UNCTAD ने विश्व निवेश रिपोर्ट जारी की
16 जून, 2020 को व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन ने अपनी विश्व निवेश रिपोर्ट, 2020 जारी की। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत 2019 में FDI का 9वां सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता था।
प्रमुख तथ्य: भारत
इस रिपोर्ट के अनुसार, 2018 में भारत का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 42 बिलियन डालर से बढ़कर 2019 में 51 बिलियन डालर हो गया है। एशिया के क्षेत्र में भारत शीर्ष 5 देशों में शामिल था।
रिपोर्ट के अनुसार भारत के डिजिटल क्षेत्र में निवेश अत्यधिक आशाजनक था। 2020 की पहली तिमाही में भारत के निवेशकों ने 650 मिलियन डालर मूल्य के सौदे किए और अधिकांश सौदे डिजिटल क्षेत्र में हुए।
प्रमुख तथ्य: विश्व
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 की तुलना में 2020 में वैश्विक एफडीआई प्रवाह में 40% की कमी आ सकती है। 2005 के बाद से यह पहला मौका है जब वैश्विक एफडीआई 1 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर के निशान से नीचे है। एशिया में विकासशील अर्थव्यवस्थाओं का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 2020 में 45% तक की गिर सकता है। दक्षिण एशिया में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 10% की वृद्धि हुई है। निवेश में वृद्धि मोटे तौर पर भारत की वृद्धि से प्रेरित थी।
वन धन योजना : स्वयं सहायता समूहों की संख्या को 18,000 से बढ़ाकर 50,000 किया गया
15 जून, 2020 को TRIFED (ट्राइबल कोऑपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया) द्वारा एक वेबिनार का आयोजन किया गया। इस वेबिनार का शीर्षक “वन धन: ट्राइबल स्टार्टअप्स ब्लूम इन इंडिया” था। इस वेबिनार के दौरान यह बताया गया कि वन धन योजना की कवरेज को 18,000 एसएचजी से बढ़ाकर 50,000 एसएचजी किया जायेगा। इसे वन धन स्टार्ट-अप कार्यक्रम के माध्यम से प्राप्त किया जायेगा।
योजना क्या है?
इस योजना में वन धन स्वयं सहायता समूहों का विस्तार किया जाएगा और इसमें 10 लाख आदिवासी लोगों को कवर करने की योजना है। इसका उद्देश्य लघु वनोपज के संदर्भ में जनजातीय पारिस्थितिकी तंत्र को अगली अमूल क्रांति के रूप में बदलना है।
वन धन विकास कार्यकम
भारत सरकार ने प्रत्येक वन धन विकास कार्यकम केंद्र को 15 लाख रुपये आवंटित किए हैं। इन केंद्रों पर अब तक 25% से 30% अनुदान खर्च किया जा चुका है।
वन धन
वन धन योजना के तहत, अब तक 1205 जनजातीय उद्यम स्थापित किए गए हैं। शुरू की गई स्टार्ट अप योजना में 10 लाख आदिवासी लोग कवर किये गये हैं।
COVID-19: भारत की पांचवीं मंदी
1947 में आजादी के बाद से भारत ने चार मंदी का सामना किया है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के अनुसार, मंदी 1958, 1966, 1973 और 1980 में हुई थी।
मुख्य बिंदु
मंदी को देश की आर्थिक गतिविधियों के साथ-साथ बिक्री, आय और रोजगार में गिरावट के रूप में परिभाषित किया गया है। भारत ने अब तक चार ऐसी नकारात्मक जीडीपी वृद्धि देखी है। 1958 में, जीडीपी की वृद्धि 1.2% थी, 1966 में यह -3.6% थी, 1973 में यह -0.32% थी और 1980 में जीडीपी की वृद्धि -5.2% थी।
1958: भुगतान संतुलन संकट
1957 में भारत को जो मंदी का सामना करना पड़ा, वह संतुलन की समस्या के कारण था। यह मुख्य रूप से कमजोर मानसून के कारण था जिसने कृषि उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित किया। भारत ने तब 60 लाख टन अनाज का आयात किया था।
1966: सूखा
भारत ने 1962 में चीन के साथ और 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध लड़े। युद्धों ने अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया और अंततः सूखे का कारण बना। 1966 में सूखे के कारण खाद्यान्न उत्पादन 20% तक गिर गया।
1973: उर्जा संकट
1973 में, दुनिया को अपने पहले ऊर्जा संकट का सामना करना पड़ा। OAPEC (अरब पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन) ने तेल आर्थिक प्रतिबन्ध की घोषणा की। इस संगठन ने उन देशों को निशाना बनाया जो इजरायल का समर्थन करते थे। इससे तेल की कीमतों में लगभग 400% की वृद्धि हुई। भारत का तेल आयात 1972 में 414 मिलियन डालर से बढ़कर 1973 में 900 मिलियन डालर हो गया।
1980: ऑयल शॉक
1980 में दुनिया ने दूसरी बार आयल शॉक देखा। यह ईरानी क्रांति के कारण तेल उत्पादन में कमी के कारण हुआ था। क्रांति के बाद हुए ईरान-इराक युद्ध के कारण यह और बढ़ गया। इससे भारत के लिए भुगतान शेष संकट पैदा हो गया।
COVID-19 संकट
भारत के सामने मौजूदा आर्थिक संकट पिछले सभी मंदी के मुकाबले सबसे खराब है। अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को उम्मीद है कि भारत की विकास दर में 5% से 6.8% की गिरावट आएगी।
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